हम इस जहाने फ़ानी में दो पल ठहर चले
जाने कहां से आए थे जाने किधर चले
मां की दुआएं इस तरह चलती हैं हमकदम
जैसे कि मेरे हमकदम कोई शजर चले
मैं एक रोशनी की किरन हूँ, न जाने क्यों
हर वक्त मेरे साथ ये मिट्टी का घर चले
जीना भी इस जहां में कहां है हुनर से कम
देखें कि अब कहां तलक अपना हुनर चले
अल्फ़ाज़ अपने तौलते हैं मोतियों से हम
जिस जिस को छू लिया उसे नायाब कर चले
’अनमोल' सच कहें हमे इस राहे इश्क पर
चलना सहल हरगिज़ भी नहीं था मगर चले
रवि कांत अनमोल
जाने कहां से आए थे जाने किधर चले
मां की दुआएं इस तरह चलती हैं हमकदम
जैसे कि मेरे हमकदम कोई शजर चले
मैं एक रोशनी की किरन हूँ, न जाने क्यों
हर वक्त मेरे साथ ये मिट्टी का घर चले
जीना भी इस जहां में कहां है हुनर से कम
देखें कि अब कहां तलक अपना हुनर चले
अल्फ़ाज़ अपने तौलते हैं मोतियों से हम
जिस जिस को छू लिया उसे नायाब कर चले
’अनमोल' सच कहें हमे इस राहे इश्क पर
चलना सहल हरगिज़ भी नहीं था मगर चले
रवि कांत अनमोल
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