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Wednesday, September 11, 2013

ग़ज़ल : हमसे गलती हुई सी लगती है

शाम ढलती हुई सी लगती है
शमअ जलती हुई सी लगती है

रात सपनो की राह पर यारो
अब तो चलती हुई सी लगती है

उनसे तय थी जो मुलाकात अपनी
अब वो टलती हुई सी लगती है

हर तमन्ना न जाने क्यों अब तो
दिल को छलती हुई सी लगती है


हमने दिल खोल कर दिखाया जो
हमसे गलती हुई सी लगती है

जाने क्यों ज़िंदगी हमें अपनी
हाथ मलती हुई सी लगती है

शाम से इक उम्मीद थी दिल में
अब वो फलती हुई सी लगती है

--
रवि कांत 'अनमोल'
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