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शहीदे-आज़म सरदार भगत सिँह |
वतन की आबरू देखें बचाने कौन आता है
कफ़न बाँधे हुए सर पर मैं निकला हूँ कि देखूँ तो
बचाने कौन आता है मिटाने कौन आता है
जो पहरेदार थे वो सब के सब हैं लूट में शामिल
जो मालिक हैं उन्हें, देखो जगाने कौन आता है
वतन को बेच कर खुशियाँ खरीदी जा रही हैं अब
वतन के वास्ते अब ग़म उठाने कौन आता है
वतन की ख़ाक का कर्ज़ा चुकाने का है ये मौका
चलो देखें कि ये कर्ज़ा चुकाने कौन आता है
परायों से लुटे अपनों ने लूटा फिर भी ज़िंदा हैं
कि देखें कौन सा दिन अब दिखाने कौन आता है
लिये वो सरफ़रोशी की तमन्ना दिल में ऐ अनमोल
यहाँ अब कातिलों को आज़माने कौन आता है
शानदार गजल हार्दिक बधाई
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [07.10.2013]
चर्चामंच 1391 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया
बहुत धन्यवाद।
Deleteसादर
रवि कांत अनमोल
आदरणीय उम्दा गजल के लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteशुकिया
Deleteसादर
रवि कांत अनमोल
परायों से लुटे अपनों ने लूटा फिर भी ज़िंदा हैं
ReplyDeleteकि देखें कौन सा दिन अब दिखाने कौन आता है
ओज से पूर्ण ग़ज़ल .बहुत कम ऐसे गज़ले लिखी जा रही हैं ...हैट्स ऑफ
शुक्रिया
Deleteसादर
रवि कांत अनमोल
बेह्तरीन अभिव्यक्ति!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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बहतरीन ग़ज़ल- अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post: कुछ एह्सासें !
नई पोस्ट साधू या शैतान
बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteसादर
रवि कांत अनमोल
शानदार गजल..
ReplyDeleteबहुत खूब कोई भी अल्फाज इसकी तारिफ के लिये छोटा होगा
ReplyDeleteबेहतरीन