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Sunday, October 6, 2013

ग़ज़ल : यहाँ अब कातिलों को आज़माने कौन आता है

शहीदे-आज़म सरदार भगत सिँह
वतन की राह में सर को कटाने कौन आता है
वतन की आबरू देखें बचाने कौन आता है

कफ़न बाँधे हुए सर पर मैं निकला हूँ कि देखूँ तो
बचाने कौन आता है मिटाने कौन आता है

जो पहरेदार थे वो सब के सब हैं लूट में शामिल
जो मालिक हैं उन्हें, देखो जगाने कौन आता है

वतन को बेच कर खुशियाँ खरीदी जा रही हैं अब
वतन के वास्ते अब ग़म उठाने कौन आता है

वतन की ख़ाक का कर्ज़ा चुकाने का है ये मौका
चलो देखें कि ये कर्ज़ा चुकाने कौन आता है

परायों से लुटे अपनों ने लूटा फिर भी ज़िंदा हैं
कि देखें कौन सा दिन अब दिखाने कौन आता है

लिये वो सरफ़रोशी की तमन्ना दिल में ऐ अनमोल
यहाँ अब कातिलों को आज़माने कौन आता है

11 comments:

  1. शानदार गजल हार्दिक बधाई
    आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [07.10.2013]
    चर्चामंच 1391 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
    नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
    सादर
    सरिता भाटिया

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    1. बहुत धन्यवाद।
      सादर
      रवि कांत अनमोल

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  2. आदरणीय उम्दा गजल के लिए आपको बधाई।

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    Replies
    1. शुकिया
      सादर
      रवि कांत अनमोल

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  3. परायों से लुटे अपनों ने लूटा फिर भी ज़िंदा हैं
    कि देखें कौन सा दिन अब दिखाने कौन आता है


    ओज से पूर्ण ग़ज़ल .बहुत कम ऐसे गज़ले लिखी जा रही हैं ...हैट्स ऑफ

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    1. शुक्रिया
      सादर
      रवि कांत अनमोल

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  4. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!!शुभकामनायें.
    आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
    http://madan-saxena.blogspot.in/
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  5. बहुत धन्यवाद।
    सादर
    रवि कांत अनमोल

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  6. बहुत खूब कोई भी अल्फाज इसकी तारिफ के लिये छोटा होगा
    बेहतरीन

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