मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल

वक़्त ये कल कहाँ से लाओगे
भीग लो मस्तियों की बारिश में
फिर ये बादल कहाँ से लाओगे
ज़िंदग़ी धूप बन के चमकेगी
माँ का आंचल कहाँ से लाओगे
वक़्त के हाथ बेचकर सांसें
ज़िंदगी कल कहाँ से लाओगे
जब जवानी निकल गई प्यारे
दिल ये पागल कहाँ से लाओगे
ज़िंदगी बन गई सवाल अगर
इसका तुम हल कहाँ से लाओगे
नर्म ये घास जिस पे चलते हो
कल ये मख़मल कहाँ से लाओगे
ये मधुर गीत बहते पानी का
कल ये क़लक़ल कहाँ से लाओगे
ये शिकारे ये दिलनशीं मंज़र
और यह डल कहाँ से लाओगे
अट गई जब ज़मीन महलों से
दाल चावल कहाँ से लाओगे
बाग़ जब कट गए तो ऐ अनमोल
ये मधुर फल कहाँ से लाओगे
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