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Tuesday, August 3, 2010

ग़ज़ल

मैत्री दिवस पर

दोस्ती को मात मत कर दोस्ती के नाम पर
इस तरह की बात मत कर दोस्ती के नाम पर

गर भरोसा उठ गया है हाथ मेरा छोड़ दे
तल्ख़ यूं जज़्बात मत कर दोस्ती के नाम पर

मुझपे पहले ही ज़माने भर के हैं एहसां बहुत
और एहसानात मत कर दोस्ती के नाम पर

मुझसे कोई बात कर अच्छी बुरी, खोटी ख़री
हाँ मगर कुछ बात मत कर दोस्ती के नाम पर

मैं बड़ी मुश्क़िल से जीता हूँ दिलों के खेल में
अब ये बाज़ी मात मत कर दोस्ती के नाम पर

मुझको मेरे हाल पर रहने दे ऐ मेरे हबीब
रहम की ख़ैरात मत कर दोस्ती के नाम पर

दोस्ती बदनाम हो जाए न दुनिया में कहीं
ऐसी वैसी बात मत कर दोस्ती के नाम पर

मुझसे रिश्ता तोड़ता है तोड ले तू हाँ मगर
आग की बरसात मत कर दोस्ती के नाम पर

दोस्ती एहसास है एहसास रहने दे इसे
बहस यूं दिन रात मत कर दोस्ती के नाम पर

--
रवि कांत 'अनमोल'
aazaadnazm.blogspot.com
मेरी नज़्में

5 comments:

  1. बहुत ख़ूब भाई. अच्छे शेर.... बढ़िया ग़ज़ल.

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  2. मुझपे पहले ही ज़माने भर के हैं एहसां बहुत
    और एहसानात मत कर दोस्ती के नाम पर.

    वाह बहुत खूब.
    हर पंक्ति एक मोती सा है.

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  3. achha likha hai badhai khas taur pe yeh behad pasand aaya
    गर भरोसा उठ गया है हाथ मेरा छोड़ दे
    तल्ख़ यूं जज़्बात मत कर दोस्ती के नाम पर

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  5. बहुत ख़ूब !
    ख़ास तौर पर ये शेर

    गर भरोसा उठ गया है हाथ मेरा छोड़ दे
    तल्ख़ यूं जज़्बात मत कर दोस्ती के नाम पर

    वाह!

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