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Sunday, August 29, 2010

ग़ज़ल : प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या कीजे

उनसे मिलते हैं ग़म सारे क्या कीजे
फिर भी वो लगते हैं प्यारे क्या कीजे

सर ढकने को छत मिलती तो अच्छा था
किस्मत में हैं चंद सितारे क्या कीजे

टूटे सपने अंधी आँखों में लेकर
मर जाते हैं लोग बेचारे क्या कीजे

जिन लोगों ने दुनिया की ख़ातिर सोचा
वो फिरते हैं मारे मारे क्या कीजे

या तो वो बहरे हैं जिनको सुनना था
या गूँगे हैं गीत हमारे क्या कीजे

शायर की आँखों में आग न पानी है
प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या कीजे


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रवि कांत 'अनमोल'
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2 comments:

  1. वाह बहुत खूबसूरत गज़ल...जितनी तारीफ़ करूँ कम है.
    बधाई.

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  2. या तो वो बहरे हैं जिनको सुनना था
    या गूँगे हैं गीत हमारे क्या कीजे

    शायर की आँखों में आग न पानी है
    प्यासे हैं हम नदी किनारे क्या की


    waqai "anmol" badhai

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