यह गीत मेरे सभी अध्यापकों को समर्पित है जिनके कारण आज मैं इसे लिख पाया
हूँ और इस योग्य बन पाया हूँ कि इसे आप तक पहुँचा सकूँ।
पढ़ना सिखाया, बढ़ना सिखाया, शुक्रिया आपका।
ये जीवन के रस्ते कब आसां थे
हम जाहिल थे, भोले थे, नादां थे
इंसां बनाया, रस्ता दिखाया, शुक्रिया आपका।
हम साज़ों में बंद पड़ी सरगम थे
हम टुकड़े थे धुंधले से ख़ाबों के
हमको सजाया, यूँ गुनगुनाया, शुक्रिया आपका ।
कल हम अपनी मंज़िल जब पाएंगे
दिन ये सारे याद हमें आएंगे
दिल से लगाया, जीना सिखाया, शुक्रिया आपका ।
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रवि कांत 'अनमोल'
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गुरु के प्रति आभार व्यक्त करती सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी
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