प्रतीक्षा के दैत्य ने
मेरे जीवन के एक और दिन को
अपने ज़ालिम जबड़ों से
चबा चबा कर खाया
और मैं बेबस सा
इस क्रूरता को देखता रहा-झेलता रहा।
तेरा पैग़ाम फ़रिश्ता बन कर
पता नहीं कब आएगा
और पता नहीं कब
इस दैत्य का अंत होगा।
मेरे जीवन के एक और दिन को
अपने ज़ालिम जबड़ों से
चबा चबा कर खाया
और मैं बेबस सा
इस क्रूरता को देखता रहा-झेलता रहा।
तेरा पैग़ाम फ़रिश्ता बन कर
पता नहीं कब आएगा
और पता नहीं कब
इस दैत्य का अंत होगा।
रवि कांत 'अनमोल'
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