नागालैंड की वादियों में
(अगस्त २००६ में मोकोकचुंग-नागालैंड में लिखी गई कविता)
ये बादल इस तरह उड़ते हैं जैसे
कोई आवारा पंछी उड़ रहा हो।
पहाड़ों की ढलानों से सटे से
हरे पेड़ों की डालों से निकल के
उन उँची चोटियों पर बैठते हैं।
और उसके बाद गोताखोर जैसे
उतर जाते हैं इन गहराइयों में
पहुँच जाते हैं गहरी खाइयों में।
सड़क जो इस पहाड़ी से है लिपटी
कभी हैरत से उसको देखते हैं
कभी सहला के उसको पोंछते हैं
कभी पल भर में कर देते हैं गीला
भिगो देते हैं चलती गाड़ियों को।
ये बादल इस तरह से खेलते हैं
कि जैसे हो कोई बच्चों की टोली
कभी हँसते हैं रो लेते हैं ख़ुद ही
कहाँ परवाह दुनिया की है इनको
जहाँ के रंजो-ग़म से दूर हैं ये,
फ़क़ीरों की तरह हैं मस्तमौला
न जाने किस नशे में चूर हैं ये।
रवि कांत 'अनमोल'
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