अरमानों की एक नदी
मेरे अंदर भी उफ़नती है
लेकिन मजबूरियों का डैम
उसे खुल कर बहने नहीं देता
बाँध लेता है उसे
समझौतों की
असंख्य नहरों में बहाने के लिए
मेरे अंदर भी उफ़नती है
लेकिन मजबूरियों का डैम
उसे खुल कर बहने नहीं देता
बाँध लेता है उसे
समझौतों की
असंख्य नहरों में बहाने के लिए
रवि कांत अनमोल
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