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Friday, January 22, 2010

विरासत

विरासत
(कारगिल हमले के समय
पाकिस्तान के नाम लिखा गया पत्र)
मैने तो दोस्ती का हाथ
तुम्हारी तरफ़ बढाया था।
क्योंकि हम दोनो
केवल पड़ोसी नहीं
भाई नहीं
बल्कि एक ही शरीर के
दो टुकड़े हैं।
चलो, फिर से एक होना
हमारी तक़दीर में न भी सही
पर एक साथ रहना तो
हमारी मजबूरी है।
फिर प्यार मुहब्बत से
क्यों न रहें?
बस यही सोच कर
मैंने दोस्ती का तुम्हारी ओर
बढ़ाया था।
पर तुमने
मेरे हाथ को पकड़ कर
धोखे का खंजर घोंप दिया
मेरी ही बगल में।
पता नहीं
यह तुम्हारी फितरत है,
तुम्हारा पागलपन है,
या किसी और की शह।
लेकिन जो भी हो,
तुम्हारे इस वार का करारा जवाब देना
अब मेरा फ़र्ज़ बन गया है।
ताकि अगली बार
ऐसी हिमाकत करने से पहले
तुम्हें सात बार सोचना पड़े।
ताकि सारी दुनिया जान ले
कि प्यार और दोस्ती
मेरी संस्कृति है, कमज़ोरी नहीं।
शांति यदि मेरी चाहत है
तो वीरता मेरी विरासत है।
सिर्फ़ दरवेश का स्वभाव ही नहीं
मेरे पास सिपाही का हौसला भी है।
प्यार से सभी को
सीने से लगाने वाले बाजुओं में
शत्रु को मसल डालने की ताकत भी है।
यह बात मैं एक बार फिर
सारी दुनिया के सामने साबित कर दूँगा।
और सच मानो
इसके बाद फिर तुम्हारी ओर दोस्ती का हाथ
मैं ज़रूर बढ़ाऊँगा
प्यार का पैग़ाम
फिर आएगा मेरी ओर से
क्योंकि मुझे विरासत में
सिपाही का हौसला ही नहीं
सभी का भला मांगने वाला
दरवेश का दिल भी मिला है।

रवि कांत 'अनमोल'

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