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Friday, January 22, 2010

कविता

तुम एक कविता ही तो हो
एक सजीव कविता
तुम ही तो कारण हो
मेरे हाथों लिखे जाते इन अक्षरों का
तुम ही तो मेरी आँखों के रास्ते मेरी आत्मा में उतरती हो
और फिर अक्षर बन कर, संगीत बन कर,
आनन्द  बन कर और सच्चाई बन कर
फूटती हो मेरी कलम से, मेरे मन से, मेरी जिह्वा से।
तुम्हारा हँसना, रूठना, उठना, बैठना, चलना
तुम्हारा देखना और न देखना
सभी कुछ कविता है संगीत है।
तुम्हारा दीद कविता है, तुम्हारी तलाश कविता है,
तुम्हारा मिलना कविता है, तुम्हारी जुदाई कविता है।
तुम रस की फुहार हो और मैं जन्मों क प्यासा।
तुम्हारा होना भी,तुम्हारा न होना भी
दोनो मेरे दिल को छूते हैं,झकझोरते हैं।
और फिर शब्द पैदा होते हैं
जो तुम्हारे रूप का प्रतिबिंब होते हैं।
लोग इन्हें कविता कहते हैं
लेकिन वास्तविक कविता तो तुम ही हो
और मैं तुम्हारा श्रोता।

 रवि कांत 'अनमोल'

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